क्या मैं पागल हूँ - लेखनी प्रतियोगिता -14-Mar-2022
सड़कों पर मुझे घूमते देख बेतहाशा
समाज ने ऐसा बनाया मेरा तमाशा।
बोले देखो छाया इस पर पागलपन
पत्थरों से मार निकालो इसका दम।
नहीं भरोसा ये किसे हानि पहुँचाएगी
पागलपन में हमें बेइज्जत कर जाएगी।
चलाया मुझ पर पत्थर,थप्पड़ व डंडे
फाड़े कपड़े, दे जख्म लोग पड़े ठंडे।
फटे कपड़ों से झाँक रही थी अस्मत
चिथड़ों से तन छुपाना बना किस्मत।
बेइज्जती का डर जिनको बड़ा सताता
चिथड़ों से झाँकता तन उन्हें था भाता।
नोचा मुझे जब मक्कारों ने मौका पाया
पागल कहकर जिंदा लाश मुझे बनाया।
मैं सोचती हूँ किसमें ज्यादा पागलपन
मैं हूँ पागल या जिनका विकृत है मन।
मेरी दुर्दशा देख किसी को दया न आई
बीमारी के इलाज़ की जहमत न उठाई।
सिर्फ बौछार हुई गाली और तानों की
माध्यम बनी बेहद अश्लील गानों की।
मैं तो थी अपनी परिस्थितियों की मारी
पर मुझे घृणा से देखे क्यों दुनिया सारी।
क्या मैं पागल हूँ, यह प्रश्न है मुझे सताता
या समाज पागल, जो पागल मुझे बताता।
डॉ. अर्पिता अग्रवाल
Shrishti pandey
15-Mar-2022 06:06 PM
Nice
Reply
Dr. Arpita Agrawal
15-Mar-2022 06:40 PM
धन्यवाद सृष्टि जी
Reply
Seema Priyadarshini sahay
15-Mar-2022 05:56 PM
बहुत सुंदर लिखती हैं आप मैम
Reply
Dr. Arpita Agrawal
15-Mar-2022 06:40 PM
Thanks a lot Seema ji 😊🥰
Reply
Punam verma
15-Mar-2022 09:24 AM
Bahut khoob
Reply
Dr. Arpita Agrawal
15-Mar-2022 12:37 PM
Thank you Punam ji
Reply